महायज्ञ का पुरस्कार​ Flashcards

1
Q

उद्देश्य​

A

इस कहानी के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहते है कि सच्ची एवं नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता है। नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म मनुष्य को निश्चय सफलता देने वाला होता है। मनुश्य का परम कर्त्तव्य दूसरों पर दया करना है। भूखे को खाना खिलाना, पीड़ितों की सहायता करना ही श्रेष्ठ धर्म है। स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव धर्म है। केवल दिखावे के लिए किया गया यज्ञ महान नहीं होती है।

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2
Q

सेठ​

A

कर्त्तव्यनिष्ठ​(wishing to do what is right): he did not want to sell his yagya because he knew that it is not right

मानवोचित गुण​(human qualities): he felt pity for the hungry dog

स्वाभिमान(self-respecting): he got angry when he thought he was being made fun of by dhanna seth

परोपकारी(selfless): he gave the hungry dog all his rotis and didn’t eat any himself

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3
Q

सेठानी

A

बुद्धिमती(intelligent): she gave the seth the idea of selling his yagya to dhanna seth

धर्मापरायण(religious): she said that God will ensure that everything will be okay.

धैर्यवती(patient): she tolerated the poverty that she and her husband were facing and she did not get angry at her husband for not selling the mahayagya to dhanna seth

पतिपरायण​(husbandly): she touched her husband’s feet when he came back from dhanna seth because her husband did not give up his rightousness even in a time of difficulty

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4
Q

धन्न सेठ की पत्नी

A

दैवी शक्ति से सम्पन्न​(having godly powers): she knew that the seth had given all his rotis to a dog without seeing him do so.

विदुषी(wise):

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5
Q

धनी सेठ कितने धर्मपरायण थे?

A

धनी सेठ इतने धर्मपरायण थे कि कोई साधु-संत उनके द्वार से निराश न लौटता, भरपेट भौजन पाता।

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6
Q

‘सब दिन न एक समान​’

यह कहावत कैसे धनी सेठ के स्थिती से सम्बंधित है?

A

धनी सेठ अत्यंत उदार थे। उनके भंडार का द्वार सबके लिए खुला था। जो हाथ पसारता था, वही पाता था। सेठ ने बहुत से यज्ञ भी की थी और दान में वे न जाने कितनी धन दीन​-दुखियों में बाँट दिए थे।परंतु, अकस्मात दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।

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7
Q

सेठ का नौबत कितना बुड़ा हो गया था?

A

सेठ की नौबत इतनी बुड़ी हो गई कि सेठ और सेठानी भूखे मरने लगे।

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8
Q

यज्ञों का क्रय-विक्रय कैसे होता था?

A

छोटा बड़ा जैस यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता।

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9
Q

“न हो तो एक यज्ञ ही बेच डालो!” किसने किस्से कहा? श्रुता का क्या प्रतिक्रिया था?

A

सेठानी ने धनी सेठ से कहा | सुनकर पहले तो सेठ बहुत दुखी हुए, पर बाद में अपनी तंगी का विचारकर एक यज्ञ बेचने के लिए तैयार हो ग​ए।

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10
Q

धन्ना सेठ कहा रहते थे और यह जगा धनी सेठ से कितने दूरी पर था?

A

कुंदनपुर​, दस​-बारह कोस दूर​

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11
Q

धनी सेठ क्या भोजन ले ग​ए और उन्हें वह भोजन कैसे मिला?

A

सेठानी पड़ोसी से थोड़ा-सा आटा माँग लाईं और रास्ते के लिए चार मोटी रोटियाँ बना पोटली में बाँधकर सेठ को दे दीं।

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12
Q

सेठ कहा विश्राम किए थे?

A

एक कुंज और कुआँ के पास​

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13
Q

सेठ जी ने हाथ भर की दुरी पर किसे देखी?

A

सेठ की ने कोई हाथ पर की दूरी पर एक छटपटाता हुआ कुत्ता देखा । यह कुत्त का पेट कमर से लगा था।

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14
Q

सेठ और कुत्ते का मुकाबला का परिचय​

A

कुत्ते को देख कर सेठ का हृदय दया से भर गया। सेठ ने एक रोटी उठाई और टुकड़े-टुकड़े कर कुत्ते के सामने डाल दी। कुत्ता धीरे-धीरे सारी रोटी खा गया।

अब उसके शरीर में थोड़ा जान आती दिखाई दी। वह मुँह उठाकर सेठ की ओर देखने लगा। उसकी आँखों में कृतज्ञता थी। सेठ ने सोचा कि एक रोटी इसे और खिला दूँ, तो फिर चलने-फिरने योग्य हो जाएगा। यह सोचकर सेठ ने एक और रोटी टुकड़े-टुकड़े करके उसे खिला दी।

दो रोटियाँ खाने के बाद कुत्ते के शरीर में शक्ति आ गैइ और वह खिसकता-खिसकता सेठ के समीप आ गया। सेठ ने देखा कि अभी भी वह अच्छी तरह चल नहीं पा रहा था। आसपास कोई बस्ती भी नहीं दिखाई दे रही थी। सेठ ने सोचा कि एक रोटी और देकर कुत्ता अच्छी तरह से चल​-फिर सकेगा। सेठ ने तीसरी रोटी भी कुत्ते को दे दी।

अब एक रोटी बची थी। उसे लेकर सेठ स्वयं खाने वाले ही थे कि सेठ ने देखा कि कुत्ते की आँखें अब भी उनकी ओर जमी थी। उन आखों में करुण याचना थी। सेठ को कुत्ते के लिए काफी दया महसूस हूआ। सेठ ने सोचा कि वे सिर्फ पानी पीके जी सकते है। वे सोचे कि, अगर कुत्त्ते को रोटी मिल जाएगा, उसमे इतनी ताकत आ जाएगी कि वह किसी बस्ती तक पहूँच सकेगा। इस कारण, सेठ ने अपनी अंतिम रोटी भी कुत्ते को दे दी।

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15
Q

धन्ना सेठ की पतनी के अनुसार​, सेठ ने कौनसा महायज्ञ किया?

A

धन्ना सेठ की पतनी के अनुसार​, सेठ ने रस्ते में स्वयं न खाकर चारों रोटियाँ भूखे कुत्ते को खिलाकर एक महायज्ञ किया।

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16
Q

सेठ ने क्या सोचा था धन्ना सेठ की पत्नी कर रहे थे?

A

सेठ ने सोचा कि धन्न सेठ की पतनी सेठ की मज़ाक उड़ा रही थी।

17
Q

महायज्ञ क्या होता है?

A

यज्ञ कमाने की इच्छा से धन दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, सच्चा यज्ञ नहीं, नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा यज्ञ-महायज्ञ होत है।

18
Q

सेठ धन्ना सेठ की हवेली से हबाहर क्यों चल आए?

A

सेठ के अनुसार​, भूखे को अन्न देना सभी का कर्त्तव्य होता है और उसमें यज्ञ का कोई बात नहीं है। उन्हे मानवोचित कर्त्तव्य का मूल्य लेना उचित नहीं लगा।

19
Q

सेठानी का सेठ का पैसा न लाने पर क्या प्रतिक्रिया था?

A

पहले, सेठानी ने सेठ को देखकर आशंका से काप उठी। सेठ ने सेठानी को पूरा कथा बताया। सुनकर सेठानी की सारी दर्द जाने कहाँ विलीन हो ग​ई। हृदय उल्लसित हो उठा। विपत्ति में भी सेठ ने धर्म नहीं धोड़ा। सेठानी ने सोचा कि उसकी पती धन्य थे और वह अपने पती के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली कि भगवन सब भला करेंगे।

20
Q

सेठ ने जवाहरातों से भरी हुई तहखान को कैसे खोजा?

A

रात को अंधकार फैलता जा रहा था। सेठानी उठकर दीया जलाने के लिए दलान में आई तो रास्ते में किसी चीज़ की ठोकर लगी। गिरते-गिरते बची, सँभलकर आले तक पहुँची और दीया जलाकर नीचे की ओर निगाह डाली तो देखा कि धलीज़ के सहारे एक पत्थर उँचा हो गया है जिसके बीचोबीच एक लोहे कि कुंदा लगा है। इसी कुंदे से उन्होंने ठोकर खाई थी।

शाम तक वह पत्थार नहीं था, परंतु अब अचानक वहा पत्थर उठ गया था।सेठानी ने अब सेठ जी को बुलाया।

सेठ जी भी अचरज रह ग​ए। दीपक की टिमटिमाती रोशनी में ध्यान से देख कर पता चला की पत्थर कोई चीज़ का ढक्कन​। सेठ ने कुंदे को पकड़कर खींचा तो पत्थर उठ आय और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ निकल आईं।

सावधानी से सेठ और सेठानी दीया हाथ में लिए उतरे। कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही इतना प्रकाश सामने आया कि उनकी आँखें चौंधियाने लगीं।सेठ ने देखा वह एक विशाल तहखान है और जवाहरातों से जगमगा रहा है।