CH-1- BADE BHAI SAHAB Flashcards
(14 cards)
1.कथा नायक की रूचि किन कार्यों में थी?
कथा नायक की रूचि खेल कूद, कँकरियाँ उछालने, गप्पबाजी करने, कागज़ की तितलियाँ बनाने, उड़ाने,
उछलकूद करने, चार दीवारी पर चढ़कर नीचे कूदने, फाटक पर सवार होकर उसे मोटर कार बना कर
मस्ती करने में थी।
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर
दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई की स्वछन्दता और मनमानी बढ़ गई। उसने ज्यादा समय मौज-
मस्ती में व्यतीत करना शुरू कर दिया।उसेलगने लगा कि वह पढ़े ना पढ़े अच्छे नम्बरों से पास
हो जाएगा। उसे कनकौए उड़ाने का नया शौक पैदा हो गया।
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर
बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों
आदि की तस्वीर बनाते, कभी एक ही शब्द कई बार लिखते तो कभी एक शेर को बार-बार सुन्दर
अक्षरों में नक़ल करते। कई बारऐसी शब्द रचना करते जिनका कोई अर्थ नहीं होता था।
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन
क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर
छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय यह सोचा कि वह अब मन लगाकर पढ़ाई
करेगा और बड़े भाई को कभी शिकायत का मौका नहीं देगा। रात ग्यारह बजे तक हर विषय का
कार्यक्रम बनाया गया परन्तु पढ़ाई करते समय खेल के मैदान, उसकी हरियाली हवा के हलके-हलके
झोंके, फुटबॉल की उछलकूद, कबड्डी, बालीबॉल की तेज़ी आदि सब चीज़े उसे अपनी ओर खींचती थीं
इसलिए वह टाइम-टेबिल का पालन नहीं कर पाया।
- एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या
प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर
एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटे भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचे तो उनकी
प्रतिक्रिया बहुत भयानक थी। वह बहुत क्रोधित थे। उन्होंने छोटे भाई को बहुत डाँटा और उसे पढ़ाई
पर ध्यान देने को कहा। गुल्ली-डंडा खेल की उन्होंने बहुत बुराई की। उनके अनुसार यह खेल भविष्य
के लिए लाभकारी नहीं है।उन्होंने यह भी कहा कि अव्वल आने पर उसे घंमड हो गया है। उनके
अनुसार घमंड तो रावण तक का भी नहीं रहा। अतः छोटे भाई को चाहिए कि घमंड छोड़कर पढ़ाई
की ओर ध्यान दे।
बड़े भाई को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर
बड़े भाई की उम्र छोटे भाई से पाँच वर्ष अधिक थी। वे होस्टल में छोटे भाई के अभिभावक के रूप में
थे। उन्हें भी खेलने, पंतग उड़ाने, तमाशे देखने का शौक था परन्तु अगर वे ठीक रास्ते पर न चलते
तो भाई के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाते। अपने नैतिक कर्त्तव्य का बोध होने के
कारणउन्हेंअपने मन की इच्छाएँदबानी पड़ती थीं।
बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
उत्तर
बड़े भाई साहब चाहते थे कि छोटा भाईहरदम पढ़ता रहे और अच्छे अंकों से पास होता रहे। इसलिए
वे उसे हमेशा सलाह देते कि ज़्यादा समय खेलकूद में न बिताए, अपना ध्यान पढ़ाई में लगाए। वे
कहते थे कि अंग्रेजी विषय को पढ़ने के लिए दिनरात मेहनत करनी पड़ती है। यदि मेहनत नहीं
करोगे तो उसी दरजे में पड़े रहोगे।
छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर
छोटे भाई नेबड़े भाई की नरमी का अनुचित लाभ उठाया। उसपरबड़े भाई का डरनहीं रहा, वह
आज़ादी से खेलकूद में जाने लगा, वह अपना सारा समय मौज-मस्ती में बिताने लगा। उसे विश्वास
हो गया कि वह पढ़े न पढ़े पास हो जाएगा।
बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार
प्रकट कीजिए।
उत्तर
छोटा भाई अभी अनुभवहीन था। वह अपना भला-बुरा नहीं समझ पाता था। यदि बड़े भाई साहब उसे
डाँटते फटकारते नहीं तो वह जितना पढ़ता था, उतना भी नहीं पढ़ पाता और अपना समय खेलकूद
में ही गँवा देता। उसे बड़े भाई की डाँट का डर था। इसी कारण उसे शिक्षा की अहमियत समझ में
आई, विषयों की कठिनाइयों का पता लगा, अनुशासित होने के लाभ समझ में आए और वह अव्वल
आया।
उत्तर
छोटा भाई अभी अनुभवहीन था। वह अपना भला-बुरा नहीं समझ पाता था। यदि बड़े भाई साहब उसे
डाँटते फटकारते नहीं तो वह जितना पढ़ता था, उतना भी नहीं पढ़ पाता और अपना समय खेलकूद
में ही गँवा देता। उसे बड़े भाई की डाँट का डर था। इसी कारण उसे शिक्षा की अहमियत समझ में
आई, विषयों की कठिनाइयों का पता लगा, अनुशासित होने के लाभ समझ में आए और वह अव्वल
आया।
बड़े भाई साहब पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप
उनके विचार से सहमत हैं?
उत्तर
बड़े भाई साहब ने समूची शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि ये शिक्षा अंग्रेजी बोलने,
लिखने, पढ़ने पर ज़ोर देती है। आए या न आए पर उस पर बल दिया जाता है।
रटने की प्रणाली पर भी ज़ोर है। अर्थ समझ में आए न आए पर रटकर बच्चा विषय में पास हो
जाता है। साथ ही अलजबरा, ज्योमेट्री निरंतर अभ्यास के बाद भी गलत हो जाती है। अपने देश के
इतिहास के साथ दूसरे देश के इतिहास को भी पढ़ना पड़ता है जो ज़रूरी नहीं है। छोटे-छोटे विषयों
पर लंबे चौड़े निबंध लिखना। ऐसी शिक्षा जो लाभदायक कम और बोझ ज़्यादा हो ठीक नहीं होती है।
- बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?
उत्तर
बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ केवल किताबी ज्ञान से नहीं आती बल्कि अनुभव से
आती है। इसके लिए उन्होंने अम्माँ, दादा व हैडमास्टर की माँ के उदाहरण भी दिए हैं कि वे पढ़े-
लिखे न होने पर भी हर समस्याओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं। अनुभवी व्यक्ति को जीवन
की समझ होती है, वे हर परिस्थिति में अपने को ढालने की क्षमता रखते हैं।
छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर
छोटे भाई को खेलना बहुत पसंद था। वह हर समय खेलता रहता था। बड़े भाई साहब इस बात पर
उसे बहुत डांटते रहते थे। उनके डर के कारण वह थोड़ा बहुत पढ़ लेता था। परन्तु जब बहुत खेलने
के बाद भीउसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया, तोउसे स्वयं पर अभिमान हो गया। अब
उसके मन से बड़े भाई का डर भी जाता रहा। वह बेखौफ होकर खेलने लगा।एक दिन पतंग उड़ाते
समय बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे समझाया और अगली कक्षा की पढ़ाई की
कठिनाइयों का अहसास भी दिलाया। उन्होंने बताया कि वह कैसे उसके भविष्य के कारण अपने
बचपन का गला घोंट रहे हैं। उनकी बातें सुनकर छोटे भाई की आँखें खुल गई। उसे समझ में आ
गया कि उसके अव्वल आने के पीछे बड़े भाई की ही प्रेरणा रही है। इससे उसके मन में बड़े भाई के
प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई।
बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
उत्तर
बड़े भाई साहब अध्ययनशील हैं, हमेशा किताबे खोले बैठे रहते हैं, घोर परिश्रमी हैं। चाहे उन्हें समझ
में न भी आए परिश्रम करते रहते हैं । वह वाकपदु भी हैं, छोटे भाई को तरह तरह से समझाते हैं।
उन्हें बडप्पन का अहसास है। इसलिए वह छोटे भाई को भी समझाते हैं। अनुभवी होने से जीवन में
अनुभव की महत्ता समझाते हैं
बड़े भाई साहब ने ज़िंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्वपूर्ण कहा है?
उत्तर
बड़े भाई साहब ने जिदंगी के अनुभव को किताबी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण माना है। जो ज्ञान बड़ों
को है वह पुस्तकें पढ़ कर हासिल नहीं होता है। ज़िंदगी के अनुभव उन्हें ठोस धरातल देते हैं जिससे
हर परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। पुस्तकें व्यवहार की भूमि नहीं होती हैं। गलत-सही,
उचित-अनुचित की जानकारी अनुभवों से ही आती है। अत: जीवन के अनुभव किताबी ज्ञान से
अधिक महत्वपूर्ण हैं।