Page 16-23 Flashcards
(60 cards)
नस्यकर्म भेद
चरक 5
नावन, अवपीड, धूमापन, धूम, प्रतिमर्श
सुश्रुत 2
शिरोविरेचन स्नेहन
वाग्भट - 3 भेद
विरेचन, ब्राह्मण, शमन)
शाङ्गधर - रेचन, स्नेहन / कर्मण, ब्राह्मण
काश्यप-2-बृहेण कर्मण / शोधन, पुरण
वर्धमान पिप्पली
रोगाधिकार
चरक - रसायन
सुश्रुत - वातरक्त
काश्यप - राजयक्ष्मा व शोथ
वर्धमान पिप्पली
मात्रा. चरक. सुश्रुत. कल्पना
उत्तम. 10. 10. पीसकर दें
मध्यम. 6. 7. क्वाथ रूप में दे
हीनबल. 3. 5. चूर्ण रूप में दे
आचार्य जैज्जट व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार पिप्पली सेवनं का निर्देश
ज्वर की संज्ञा
सर्वरोगाग्रज - चरक
रोगराज - सुश्रुत
रोगपति - वाग्भट
विषम ज्वर भेद
चरक - 5
काश्यप - 7
विषम ज्वर के अधिष्ठान
नाम. चरक. सुश्रुत
सन्तत. रस। रस
सतत. रक्त रक्त
अन्येधुष्क. मेद (मांस=x) मांस
तृतीयक. अस्थि मेध
चतुर्थक. मज्जागत अस्थि मज्जा
गुल्म भेद -
चरक, सुश्रुत व काश्यप – 5 (V,P,K,S,R)
वाग्भट - 8 (V,P, K, VP, VK,KP,S,R)
रक्त गुल्म की चिकित्सा का निर्देश -
चरक 10 मास पश्चात
काश्यप 12 मास पश्चात
रक्तपित्त में गंध (पूर्वरूप में)
मत्स्यगंधता - चरक, वाग्भट,
लोहगंधिता - चरक, सुश्रुत
पमेह भेद
चरक - स्थूल व कृश
सुश्रुत - सहज (कृश) व अपथ्य निमित्तज (स्थूल)
प्रमेह पिडिका चिकित्सा -
चरक - शस्त्र साध्य
सुश्रुत - धान्वन्तर घृत, नवायस लौह, लौहारिष्ट का प्रयोग (पिडिका की अवस्थानुसार औषध या शस्त्र प्रयोग)
कुष्ठ -
प्रकार-
चरक 7, 18 व असंख्य
सुश्रुत - 18
सुश्रुत ने चरकोक्त मण्डल व सिध्ममहाकुष्ठ को क्षुद्रकुष्ठ में माना है
तथा दद्द्रु एवं अरूण कुष्ठ को महाकुष्ठ में माना है।
महा कुष्ठ
चरक
कपाल-वात
ओदुम्बर – पित्त
मण्डल - कफ
ऋष्यजिव्ह – वात-पित्त
पुण्डरीक – पित्त+कफ
सिध्म - वात+कफ
काकणक त्रिदोषज
सुश्रुत
अरूण-वाताधिक
पुण्डरीक व दद्रु - श्लेष्माधिक
शेष महाकुष्ठ – पित्ताधिक्य से होते है
क्षुद्र कुष्ठ
चरक
एककुष्ठ चर्माख्य, किटिम, विपादिका व अलसक - वातकफज
दद्रु, चर्मदल, पामा, विस्फोट व शतारू – पित्तकफज
विचर्चिका - कफज
सुश्रुत
एककुष्ठ, रकसा, महाकुष्ठ, अरुष्क व सिध्म
कफज
परिसर्प - वातिक
शेष अन्य क्षुद्र कुष्ठ - पैत्तिक
असाध्यमहाकुष्ठ -
चरक काकणक कुष्ठ
सुश्रुत - पुण्डरीक व काकणक कुष्ठ
गर्भिणी सर्प के काटने पर लक्षण -
चरक - मुख, पाण्डु, ओष्ठशोथ, नेत्र कृष्णवर्ण
सुश्रुत - मुख पाण्डु वर्ण, ध्यमात
प्रसूता सर्प के काटने पर लक्षण
चरक - उपजिव्हिका रोग, मुत्ररवत्तवर्ण, जृम्भा, क्रोध
सुश्रुत – उपजिव्हिका रोग + रक्तमूत्रता, उदरशूल
स्नेह की मात्रायें चरक
चरक
(1) प्रधान मात्रा - 24 h
जो दिन व रात में पच जावें
शमनार्थ प्रयुक्त होती है
गुल्म, सर्पदंश, विसर्प, उन्माद व मूत्रकृच्छ्र में
(2) मध्यम मात्रा -12 h
जो दिन में पंच जावें
शोधनार्थ प्रयुक्त होती है
इसे स्नेह की “मन्दविभ्रंशा” भी कहते है
अरूष्क, स्फोट, पिड़का, कण्डु, पामा, कुष्ठ, प्रमेह व वातरक्त में निर्दिष्ट
(3) हीन मात्रा - 6 h
जो आधे दिन में ही पच जावें
ज्वर अतिसार व कास में निर्दिष्ट हैं।
स्नेह की मात्रायें सुश्रुत
सुश्रुतमतानुसार
(1) चतुर्थभागगतेऽहनि 3h
एक प्रहर में पचने वाली
अल्पदोषो में हितकर अग्निदीपक,
(2) अर्द्धकोदिवस - 6 घन्टे में
वृष्य व वृंहण, मध्य दोषों मे देय
(3) चतुर्थभागावशेष- 9 घन्टे में
स्निग्धकारक, अधिक दोषों में देय
(4) सम्पूर्ण दिन 12 घंटे में
ग्लानि, मूर्च्छा व मद को छोड़कर सभी रोगों में हितकर
(5) दिन व रात - 24 घंटे में
कुष्ठ, विष, उन्माद, अपस्मार व ग्रह रोगों में उपयोगी।
सर्पि संज्ञा -
चरक - पुराण धृत - 10 वर्ष तक उग्र गंध वाला
प्रपुराण धृत – 100 वर्ष तक लाक्षा रस के समान, सर्वरोगावहं,
सुश्रुत - कुम्भसर्पि - 11.1 वर्ष तक
महासर्पि 111 वर्ष से पुरामा धृत तिमिर व वात नाशक
भाव प्रकाश- पुराण धृत- 1 वर्ष पुराना
गर्भ की वर्णोत्पत्ति में महाभूत चरक
(अवचात) गौरवर्ण - (तेज जल + आकाश महामृत से)
कृष्ण वर्ण (पृथिवी + वायु महाभूत)
श्याम वर्ण (आकाश+ वायु +पृथिवी +तेज सभी महाभूतो के समरूप में मिलने से) (समसर्वधातुप्रायः)
गर्भ की वर्णोत्पत्ति में महाभूत सुश्रुत
तेज महाभूत सभी वर्णों में उपस्थित रहता है
गौरवर्ण - तेज + जल
कृष्णवर्ण – तेज + पृथिवी
कृष्णश्याम वर्ण - तेज + पृथिवी + आकाश
गौर श्याम वर्ण - तेज़ + जल + आकाश महाभूत
से
सूतिका काल
सुश्रुत 45 दिन
वाग्भट - 45 दिन
भावमिश्र - 45 दिन या 4 माह
काश्यप 30 दिन या 6 माह
सूतिका परिचर्या - 45 दिन
हारीत - 45 दिन
शार्गंधर - 1½ माह या पुनः
आर्त्तव दर्शन तक
आधुनिक - 45 दिन
गुडहरीतकी
चरक - अर्श
सुश्रुत - वातरक्त