Page 34-38 Flashcards

(53 cards)

1
Q

त्वचा वर्गीकरण

चरकानुसार

A

प्रथम उदकधरा

द्वितीय अस्कधरा

तृत्तीय सिध्म व किलास का अधिष्ठान(SKT)

चतुर्थ ददु व कुष्ठ का अधिष्ठान(DKC)

पंचम अलजी व विद्रधि का अधिष्ठान(AVP)

षष्ठी - इसके कटने पर तमः प्रवेश व स्थूल मूल की पिड़िकाओं की उत्पत्ति हो जाती है।

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2
Q

त्वचा वर्गीकरण
सुश्रुतानुसार -

A

(आलो श्वेता वेरोम)

प्रथम अवभासिनी
ब्रीही के 1/18 प्रमाण में प्रकाशक, सिध्म, पदम व कंटक का अधिष्ठान सर्ववर्ण व छाया की

द्वितीय-लोहिता- (नवती) लोहा 90 रुपए का
ब्रीही के 1/16 प्रमाण में का अधिष्ठांन तिलकालक, न्यच्छ व व्यंग

तृतीया-श्वेता
ब्रीही के 1/12 प्रमाण में चर्मदल, अजगल्ली वमशकाधिष्ठाना चर्मदल, अजगल्ली व

चतुर्थी व्राम्रा (केके ताम्रा)
ब्रीही के 1/8 प्रसार्ण -विविधकिलास, कुष्ठाधिष्ठाना

पंचमी-वेदिनी -
ब्रीही के 1/5 प्रमाण में कुष्ठ, विसर्पाधिष्ठाना

षष्टी - रोहिणी-
ब्रीही भाग प्रमाण में ग्रंथि, अपची, अर्बुद, श्लीपद, गलगण्डाधिष्ठाना
अर्शाधिष्ठाना

सप्तमी -मांसधरा-
वीही - वीही द्वय भाग प्रमाण में भगन्दर, विद्रधिं, कुष्ठ का अधिष्ठान वेदिनी व ताम्रा दोनों को माना है।

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3
Q

विषवेग चरक

A

वेगा चरक
प्रथम। रस विकृत्ति
द्वितीय। रक्तविकृत्ति (तमकश्वास)
तृतीय। मांसविकृति
चतुर्थ। सर्वदोष प्रकोप
पंचम । नीलादीनांतमसो
षष्टम हिक्का
सप्तम स्कन्ध भंग
अष्टम। मृत्यु

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4
Q

विषवेग सुश्रुत

A

वेग
प्रथम। जिव्हा श्याववर्णी व श्वास की उत्
द्वितीय आमाशय में विष, वेपथु
तृतीय। तालूशोष, तीव्रआमाशय शूल
चतुर्थ हिक्का आमाशय व पक्वाशय में पीडा
पंचम सर्वदोष प्रकोप, पर्वभेद, वैवर्ण्य दर्शन
षष्टम तीव्रातिसार, बुद्धि व प्राणों का नाश
सप्तम। स्कन्ध, कटिपात व मृत्यु
अष्टम। X

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5
Q

विषवेगो की चिकित्सा - चरक

A

प्रथम वेग। दाहकर्म, चमन
द्वितीय वेग। विरेचन
तृतीय वेग। क्षारागदपान
चतुर्थ वेग। गौमयरस, कपित्थ मधु
पंचम वेग। काकाण्ड व शिरीष
षष्टम वेग। संज्ञास्थापक औषध
सप्तम वेग। स्थावर में जंगमविष प्रयोग व
सर्पदष्ट, काकपद चीरा अष्टम वेग। पलाश बीज चूर्ण व मोरपित्त

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6
Q

विषवेगो की चिकित्सा - सुश्रुत

A

प्रथम वगन, गधु व धृत से अगदपान
द्वितीय वमन, विरेचन
तृतीय अगदपान, नस्य, अंजन
चतुर्थ स्नेहमिश्रित अगदपान
पंचम मधुयष्ठी क्वाथ+अगद, प्रयोग
षष्टम अवपीड नस्य व अतिसार चिकित्सा
सप्तम काकपदचीरा
अष्टम x

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7
Q

गर्भिणी की मासानुमासिक परिचर्या
चरक

A

मास. चरक
प्रथम शीतल दुग्ध
द्वितीय मधुर गण से सिद्धक्षीर
तृतीय दूध + मधु + धृत
चतुर्थ दूध+मक्खन या 1 अक्ष
प्रमाण में मक्खन
पंचम. दूध में धृत मिलाकर
षष्टम मधुरगण से औषध सिद्ध
दध में धत मिलाकर
सप्तम मधुरगण से औषध सिद्ध
दूध में धृत- मिलाकर
अष्टम. यवागु, दूध व धृत प्रयोग
नवम। अनुवासन वस्ति

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8
Q

गर्भिणी की मासानुमासिक परिचर्या
सुश्रुत

A

मास।
प्रथम 1-3 मास तक
मधुर, शीत व द्रव आहार दे।
द्वितीया. same
तृतीया same
चतुर्थ पींनवनीत संसृष्ट आहार या
जांगलमांस युक्त आहार
पंचम दूध में धृत मिलाकर
षष्टम. श्वदंष्ट्रा सिद्ध यवागु प्रयोग
सप्तम पृथकपर्णी से सिद्ध धृत प्रयोग
अष्टम बदरोदक वाथ ने आश्थापन
वस्ति तदन्तर मधुर गण व
दूध से अनुवासन वस्ति

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9
Q

स्रोतस मूल

A

चरक - 13 स्रोतस
सुश्रुत – 11 जोड़े स्रोतस

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10
Q

श्रोतस मूल चरक

A

नाम स्रोतस
प्राणवह। हृदयं मूलं महासोतश्च
उदकवह। तालूमूलं क्लोमं च
अन्नवह। आमाशयो मूलं, वामं च पार्श्व
रसवह। हृदयं मूलं दशधमन्यश्च
रक्त्तवह। यकृन्मूलं प्लीहा च
मांसवह। स्नायुर्मूलं त्वक च
मेदोवह। वृक्कौमूलं वपावहनं च
अस्थिवह। मेदो मूलं जघनं च
मज्जावह। अस्थिनी मूलं सन्धयश्च
शुक्रवह। वृषणौमूलं शैफश्च
मूत्रवह। वस्तिमूलं, वंक्षणौ च
स्वेदवह। मेदोमूलं, लोमकूपश्च
पुरीषवह। पक्वाशयोमूलं, स्थूल गुद च
आर्त्तववह। X

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11
Q

श्रोतस मूल सुश्रुत

A

प्राणवह। हृदयं रसवाहिन्यश्च धमन्य
उदकवह। तालूमूलं क्लोम च
अन्नवह आमाशयोऽन्नवाहिन्यश्च धमन्यः
रसवह। हृदयं रसवाहिन्यश्च धमन्यः
रक्तवह। यकृत प्लीहानों रक्तवाहिन्यश्च
मांसवह। स्नायु त्वचं रक्तवाहिन्यश्च धमन्यः
मेदोवह। कटिवृक्कौ च
अस्थिवह। X
मज्जावह. X
शुक्रवह. स्तनौवृषणौ च
मूत्रवह। वस्तिमेद्रं च
स्वेदवह। X
पुरीषवह। पक्वाशयो गुदं च
आर्त्तववह। गर्भाशय आर्तव वाहिन्य
धमन्यः

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12
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
प्राणवह

A

आक्रोशन विनमनंमोहन वेपनानि मरणं वा

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12
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
अन्नवह

A

अन्नवह - आध्मानं शूलोऽन्नद्वैषश्छर्दि पिपासा आन्ध्यं मरणं च

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13
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
उदकवह

A

उदकवह - पिपासा, सद्योमरणं च।

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14
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
रसवह

A

रसवह – प्राणवहविद्धवत मरणं तत् लिंगानि च।

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15
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
रक्तवह

A

रक्तवह - श्यावांगता ज्वरो दाहः पाण्डुता शोणितागमनं रक्तनैत्रता च

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16
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
मांसवह

A

मांसवह - श्वयर्थ मांसशोष सिराग्रंथयो मरणं च

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17
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
मेदोवह

A

मेदोवह – स्वेदागमनं स्निग्धांगता तालुशोषः स्थूलता शोफ पिपासा च।

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18
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
मूत्रवह

A

मूत्रवह - आनद्धवस्तिता, मूत्रनिरोध, स्तब्ध मेढ्रता

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19
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
पुरीषवह

A

पुरीषवह - आनाहर्दुगन्धता, ग्रथितांत्रता च

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20
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
शुक्रवह

A

शुक्रवह - क्लीवता चिरात प्रसेको रक्त शुक्रता च।

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21
Q

स्रोतोविद्ध लक्षण (सुश्रुते)
आर्त्तव वह

A

आर्त्तव वह - बन्ध्यत्वं, मैथुनासहिष्णुत्वं, आर्त्तवनाशश्च

22
Q

रक्तवाहिन्यश्च धमन्य मूल है-

A

रक्तवह व मांसवह स्रोतस का

23
Q

पिपासा लक्षण है

A

अन्नवह, उदकवह व मेदोवह सोतोविद्ध का

24
मरण लक्षण है
प्राणवह, अन्नवह, उदकवह, रसवह व मांसवह स्रोतोविद्धी के
25
सधोमरण लक्षण है-
उदकवह स्रोतोविद्ध
26
आन्ध्य लक्षण है-
अन्नवह स्रोतोविद्ध
27
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) प्राणवह
धातुक्षय, वेग संधारण, व्यायामश्रधितस्य च।
28
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) उदकवह
उदकवह - अतिशुष्कान्नसेवन, गदिरापान
29
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) रसवह
रसवह गुरु आहार, चिन्त्यानां च अतिचिन्तनाच्च (अधिक सोचना)
30
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) रक्तवह
रक्तवह - विदाही अन्नपान
31
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) मांसवह
मांसवह - भुक्त्त्वा च स्वपतां दिवा (खाने के बाद दिवारवाप)
32
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) मेदोवह
मेदोवह - भयात, वारूण्यां च अतिसेवनात, अव्यायाम, अतिव्यायाम
33
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) मज्जावह
मज्जावह - आधात, विरूद्धानां च सेवनात
34
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) अस्थिवह
अस्थिवह - संक्षोभ, व्यायाम
35
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) शुक्रवह
शुक्रवह - वेगावरोध, शस्त्रक्षाराग्नि
36
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) मूत्रवह
मूत्रवह - वेगावरोध
37
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) पुरीषवह
पुरीषवह - वेगावरोध, अध्यशन, अत्यशन
38
स्रोतोदुष्टि के कारण (चरकानुसार) स्वेदवह
स्वेदवह - व्यायाम, अतिआतप, क्रोध, शोक व भय
39
स्रोतोदुष्टि चिकित्सा – (चरक)
प्राणवह श्वास की चिकित्सा उदकवह - तृष्णा की चिकित्सा अन्नवह - आमदोष की चिकित्सा मूत्रवह मूत्रकृच्छ्र की चिकित्सा मलवह अतिसार की चिकित्सा स्वेदवह ज्वर की चिकित्सा
40
अन्र्त्तविद्रधियों के लक्षण चरक
नाम। चरक हृदय। धड़कन, तमकश्वास, कास क्लोम. पिपासा, गलग्रह यकृत. श्वासवृद्धि प्लीहा। उच्छवास में वृद्धि उदर। पार्श्व, स्कन्धशूल वृक्क। पार्श्व पृष्ठकटिग्रह नाभि। हिक्का वंक्षण। पैरो में अवसाद मूत्राशय। मूत्रकृच्छ्रता, मूत्रप्रवृत्ति गुद X
41
अन्र्त्तविद्रधियों के लक्षण सुश्रुत
नाम। सुश्रुत हृदय। हृदय में जकड़ाहट क्लोम। श्वास, पिपासाधिक्य यकृत। श्वास व पिपासा प्लीहा। उच्छवासरोध उदर। वातप्रकोप वृक्क। पार्श्व संकोच नाभि। हिक्का, आटोप वंक्षण। पार्श्व, पृष्ठकटिग्रह मूत्राशय। मूत्रावरोध गुदा। वात व मलावरोध
42
संग्रह काल चरक
चरकानुसार - मूल – शिशिर व ग्रीष्म में - नूतन पत्र व शाखा – वर्षा व वसन्त छाल, कन्द व क्षीर- शरद (स्नूहीक्षीर-शिशिर) सार - हेमन्त पुष्प व फल – यथा ऋतु में
43
संग्रह काल राजानिघंटु
राजानघण्टु कन्द हिम ऋतु में मूल - शिशिर पुष्प व फल - वसन्त प्रवाल पत्र - निदाध काल पंचांग - शरद
44
संग्रह काल शार्गधर
वमन विरेचनार्थ – वसन्त के अन्त में ग्राह्मा अन्य सभी कार्यों हेतु - शरद ऋतु में ग्राह्मा
45
सिराओं का मूल सुश्रुत वाग्भट
सुश्रुत - नाभि वाग्भट - हृदय
46
व्रणाश्रय
सुश्रुत (8) - त्वचा, मांस, सिरा, स्नायु, अस्थि, संधि, कोष्ठ, मर्म चरक (8) - त्वचा, मांस, सिरा, स्नायु, अस्थि, मेद, कोष्ठ, मर्म आमाशयस्थ श्लेष्मा शेष (4) कफो को पोषण देता है - सुश्श्रुत त्रिकस्थ श्लेष्मा शेष (4) कफो को पोषण देता है - चरक
47
श्रेष्ठ अंजन -
चरक सौवीरांजन सुश्रुत - स्रोतोजन
48
वर्षा ऋतु में सेवन योग्य
चरक - अम्ल, लवण व स्निग्ध सेवन (कूप के जलका सेदन) सुश्रुत - कटु, तिक्त, कषाय सेवन (आन्तरिक्ष जल का सेवन)
49
वातिकं शोथ - कफज शोथ -
वातिकं शोथ - दिवावली कफज शोथ - रात्रिवली
50
कर्णिनी व उपप्लूता योनिव्यापद – परिप्लूता व वामिनी योनिव्यापद –
कर्णिनी व उपप्लूता योनिव्यापद – वात कफज परिप्लूता व वामिनी योनिव्यापद – वात पित्तज
51
प्रतिमार्गहरण चिकित्सा - प्रतिद्वन्द चिकित्सा - जुगुप्सा चिकित्सा - व्यत्यासात चिकित्सा -
प्रतिमार्गहरण चिकित्सा - रक्तपित्त में प्रतिद्वन्द चिकित्सा - उन्माद में जुगुप्सा चिकित्सा - राजयक्ष्मा में व्यत्यासात चिकित्सा - श्वास, कास, अर्श, पित्तावृतवात में
52
एको महागद - महादोष महागदम् - महागदं महावेगं अग्निवत शीघ्रकारी – महामूला, महावेगा, महाशब्दा, महाबला- महाव्याधि -
एको महागद - अत्तत्वाभिनिवेश महादोष महागदम् - मद्य महागदं महावेगं अग्निवत शीघ्रकारी – रक्तपित्त महामूला, महावेगा, महाशब्दा, महाबला हिक्का महाव्याधि - हलीमक