Page 24-28 Flashcards
(31 cards)
मांस में उत्तरोत्तर गुरूता का क्रम -
चरक
(क) सक्थि< स्कन्ध < छाती उदर < शिर
(ख) मांसरस < अण्ड चर्म < मूत्रेन्द्रिय < श्रोणि < वृक्क यकृत < गुदा <मध्य देह <p अस्थियाँ
(MATCH में MS VYG MA)
सुश्रुत
सक्थि स्कन् < स्कन्ध < हृदय < सिर < पाद < हस्त < कटि < पीठ < चर्म < कालेयक (वृक्क) < यकृत < आंत्र
चरक - पुरुष का मांस गुरू व स्त्री का लघु होता है
सुश्रुत – चौपायो में पुरूष का मांस गुरू एवं स्त्री का लघु होता है मगर पक्षियों में स्त्री का मांस गुरू व पुरूष का लघु होता है इसिलिए लघु होने के कारण चौपायों में स्त्री का तथा पक्षियों में पुरुष का बांस बिष्ठ गया है।
सुश्रुतानुसार अन्य गुण -
अल्प शरीर वालों में बड़े जानवर का मांस ग्राह्मा है।
वृहत शरीर वालों में छोटे जानवर का मांस ग्राह्मा है।
पुरूष का ऊपरी भाग गुरू होता है व स्त्री का अधोभाग
फल भक्षी पक्षियों का मांस रूक्ष,
मांस भक्षि पक्षियों का वृंहण एवं
मत्स्य भक्षी पक्षियों का मांस पित्तकारक होता है।
इक्षु विकारों में उत्तरोत्तर श्रेष्ठता
धौतगुड़ <मत्स्यण्डिका < खाण्ड < शर्करा (चरक, सुश्रुत)
मधु भेद -
चरक - 4 (भ्रामर, माक्षिक, पौत्तिक, क्षौद्र)
सश्रुत - ३ (भ्रामर, माक्षिक, पौत्तिक, क्षौद्र, छात्र अध्र्य औददालकं व दाल)
गुणधर्म -
चरकानुसार -
माक्षिक तैलवर्णी (श्रेष्),
पौत्तिक - धृतवणी,
भमर - श्येतयर्णी
श्रौद्र - कपिलवर्णी
सुश्रुत
माक्षिक (श्रेष्ठ) श्वास कास नाशक
छात्र - कुष्ठ व प्रमेहहर
आर्ध्य - नैत्र रोगों में उपयोगी
औद्दालक - स्वरविकार, कुष्ठ व विषनाशक
दाल वमन व प्रमेह नाशक
मधुवातकारक व कफनाशक - चरक
त्रिदोष नाशक - सुश्रुत
प्रमेह में मधुनिषिद्ध नहीं है।
दश प्राणायतन -
चरक – सूत्र स्थान में -
शंखौ मर्मत्रयोकण्ठौ रक्तं शुक्र औजसी गुद्द्म (शारीर स्थान में-शंख के स्थान पर मूर्धा व मांस का समावेश किया है।)
वाग्भट – शंख के स्थान पर मूर्धा व जिव्हा बंधन को माना है।
महाकुष्ठ लक्षण -
चरकानुसार - कपाल
विषमविस्रतानि, जन्तुमा कृष्ण अरूण कपाल वर्णानि।
औदुम्बर –
ताम्रवर्णी, पक्वगूलर सदृश्य
मण्डल -
श्वेत रोमो से व्याप्त
ऋष्यजिव्ह –
परूषाणप्यरूणवर्णानि, बर्हिरन्तरश्यावानि
पुण्डरीक
किनारे लाल, मध्य में रक्त श्वेतवर्णी (सुश्रुत-कमलपत्र सदृश्य)
सिध्म –
बहुनि अल्प वेदना, अलाबुपुष्पवत
काकणक –
काकणन्ति (गुंजा) प्रभं (सुश्रुत-सिध्मकुष्ठ अतसी पुष्पवर्णी)
कुछ प्रमुख क्षुद्रकुष्ठो के लक्षण – (चरकानुसार)
एककुष्ठ
अस्वेदनं, यनमत्स्यशकलोपम्
चर्मकुष्ठ –
हस्तिचर्मवत
किटिम –
श्याववर्णी, व्रण सदृश्य
दद्रु –
खुजली व लालिमायुक्त पिड़काये
चर्मदल
- स्पर्शासहत्व
पामा
– कण्डु आधिक्य, स्राव अधिक
विचर्चिका
- श्याववर्णी पिडका, शुष्काधिक्य
Revise
चरक
कारण–भिषक
करण – भैषज
कार्य योनि- घात
कार्यफल – सुखावाप्ति
अनुबन्ध - आयु
देश - भूमी /आतुर
काल - संवत्सर / आवस्थिक
प्रवृत्ति – प्रतिकर्मसमारम्भ
उपाय – कारण, करण व
Revise
सुश्रुत
कर्त्ता – भिषक -
करण - रस
कारण – दोष
कार्य - आरोग्य
गर्भ विकार - चरक वागभट्ट
चरक
उपविष्टक। गर्भोवृद्धि न प्राप्नोति
नागोदर।
कालमवतिष्ठतेऽतिमात्रं, अस्पन्दनश्च
लीनगर्भ
प्रसुप्तो, न स्यन्दते
वाग्भट
उपविष्टक
वृद्धिमप्राप्नुवन, सस्फुरः
नागोदर
उदरंवृद्धिऽप्यत्रहीयते, स्फूरणं चिरात
लीनगर्भ
प्रसुप्तो, न स्पन्दते