Page 43-47 Flashcards

(44 cards)

1
Q

शस्त्र को पकड़ने का स्थान -
भेदन शस्त्र
विसावण हेतु -
एषणी, आरा व करपत्र को

A

भेदन शस्त्र फल व वृन्त के संयोग स्थल से
विसावण हेतु - वृन्ताग्र से पकडे
एषणी, आरा व करपत्र को मूल से पकड़े

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2
Q

जौंके -
सविष

A

कृष्णा-अंजन सदृश्य व कृष्णवर्णी
कर्बरा – वर्मी मछली सदृश्य
अलर्गदा – रोमयुक्त
इन्द्रायुधा – इन्द्रधनुष सदृश्य
गौचन्दना – गौवृषणवद (अधोभाग द्विधाकृत)
सामुद्रिका -

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3
Q

जौंके -
निर्विष

A

निर्विष
कपिला-मनःशिला व मूँग सदृश्य
पिंगला-रक्तवर्णी व आशुगामी
शंकुमुखी-यकृदवर्णी व शीघ्रपायी
मूषिका - अनिष्ठ गंध वाली
पुण्डरीक मुखी-मुद्गवर्णी सावरिका-प‌द्मपत्रवर्णी, 18 अंगुल लम्बी व पशुओं में उपयोगी

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4
Q

दोषानुसार रक्त का लक्षण -

A

वातिक – अरूणवर्णी व नहीं जमनेवाला
पैत्तिक - विस्रगंधि
कफज - गैरिकोदक व मांसपेशी सदृश्य
सान्निपातिक – कांजी सदृश्य
रक्तज - पित्त सदृश्य मगर अधिक काला

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5
Q

असम्यक कर्णवेधन पर विभिन्न सिराओं पर आधात के लक्षण -

A

कालिका – ज्वर, दाह, श्वथु व वेदना
मर्मरिका - ज्वर, वेदना, ग्रंथि
लोहितिका - मन्यास्तम्भ, अपतानक, शिरोग्रह व कर्णशूल

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6
Q

कर्ण वेधन से पूर्व दोषानुसार सिंचन -

A

वातिक - कांजी + गर्म जल से
पैत्तिक – दुग्ध + शीतल जल से
कफज - सुरा मण्ड + उष्णजल से

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7
Q

विभिन्न बंधन -

A

कोशबंध – दाम बंध - स्वस्तिक –
अनुवेल्लित – मुत्तोली – मण्डल -
स्थगिका - यमक - खट्वा -
चीन - विबन्ध - वितान - गोफणा -
पन्चांगी उत्संग –

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8
Q

विभिन्न बंधन व उनके प्रयोग स्थल -

A

कोशबंध – अंगुली व अंगुली पर्व पर
दाम बंध - सम्बाधांग
स्वस्तिक – सन्धि, कूर्चक, भ्रू, स्तन व कर्णतल पर
अनुवेल्लित – हस्त व पाद पर
मुत्तोली – ग्रीवा व लिंग पर
मण्डल - उदर, उरू व बाहू पर
स्थगिका - अंगुष्ठ, अंगुली व शिश्नाग़ पर
यमक - संयुक्त व्रणो पर
खट्वा - हनु, शंख व गंड पर
चीन - नैत्र व अपांग पर
विबन्ध - पीठ, उदर व छाती पर
वितान - सिर पर
गोफणा - ठोडी, नासा, ओष्ठ, वस्ति
पन्चांगी - जत्रुर्ध्व
उत्संग – बाहु पर (वाग्भट)

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9
Q
A
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10
Q

अहोरात्र काल. सदृश्य ऋतु लक्षण
प्रत्यूष.
पूर्वान्ह.
मध्यान्ह.
अपरान्ह.
संध्या.
रात्रि.

A

अहोरात्र काल. सदृश्य ऋतु लक्षण
प्रत्यूष. हेमन्त के सदृश लक्षण
पूर्वान्ह. वसन्त के सदृश लक्षण
मध्यान्ह. ग्रीष्म के सदृश लक्षणं
अपरान्ह. प्रावृट के सदृश लक्षण
संध्या. वर्षा के सदृश लक्षण
रात्रि. शरद के सदृश लक्षण

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11
Q

विभिन्न ऋतुओं में प्रवाहित वायु की दिशा -

हेमन्त -
ग्रीष्म में –
वसन्त में -
प्रावृट -

A

हेमन्त - उत्तरी वायु
ग्रीष्म में – नैऋत दिशा से वायु,
वसन्त में - दक्षिणी वायु
प्रावृट - पश्चिम दिशा से

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12
Q

दोष प्रकोप काल -
वात प्रकोप -
पित्त प्रकोप -
कफ प्रकोप –

A

वात प्रकोप -
प्रत्यूषकाल, अपरान्ह व जीर्णेऽन्ने, घर्मान्ते

पित्त प्रकोप -
मध्यान्ह, अर्द्धरात्रि व जीर्यत्यऽन्ने, मेघान्ते

कफ प्रकोप –
प्रदोष, पूर्वान्ह व भुक्तमात्रे, बसन्त

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13
Q

दोष. संचय. प्रकोप. प्रसर
वात.
पित्त.
कफ

A

दोष. संचय. प्रकोप. प्रसर
वात. स्तब्ध पूर्ण कोष्ठतोद, आटोप
कोष्ठता. संचरण वार्योविमार्गगमन

पित्त. पीतावभासता अम्लिका, ओष, चोष,
मन्दौष्मताचांगानां. पिपासा धूमायनानि
परिदाह
कफ गौरवमालस्य, अन्नद्वैष अरोचक,
चय कारण विद्वैष हृदयोत्क्लेद अविपाक
अंगसाद, छर्दि

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14
Q

विभिन्न स्थानों पर होने वाले व्रणो का साव
त्वचा पर व्रण –
मांस में व्रण -
सिरा पर व्रण –
स्नायु –
अस्थि -
संधि पर व्रण -
कोष्ठ में व्रण

A

त्वचा पर व्रण – जल सदृश्य, पीतवर्णी स्राव
मांस में व्रण - धृत सदृश्य, श्वेतवर्णी स्राव
सिरा पर व्रण – तत्काल – रक्तातिप्रवृत्ति
कालान्तर में – ओस सदृश्य स्राव
स्नायु – सिंधाणक सदृश्य स्राव
अस्थि - अस्थिसीप सदृश्य, पूय व मलयुक्त
संधि पर व्रण - आकुंचन पर चारानी सदृश्ण
कोष्ठ में व्रण मूत्र, पुरीष, पूरा व रक्त की प्रवृत्ति

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15
Q

भस्म कपोतास्थि वर्णी वर्ण

असाध्य वण -

A

भस्म कपोतास्थि वर्णी वर्ण वातिक ग्रण

असाध्य वण - मांसपिण्डवद, अश्यापान (घोडी के भगौष्ठ सदृश), गौ श्रृंगवत

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16
Q

शस्त्रकर्म - व्याधियाँ
छेदन कर्म -

A

भगन्दर (शतपोनक), श्लैष्मिक ग्रंथि, नाड़ीव्रण, अर्श, गलगुण्डिका, वल्मीक व उपदंश में।

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17
Q

शस्त्रकर्म -व्याधियाँ
भेदन कर्म

A

भेदन कर्म - विसर्प, वृद्धि, प्रमेहपिडका, व्रणशोफ, नाडीव्रण, प्रायः सभी क्षुद्ररोग, तालुपुप्पुट, तुण्डीकेरी

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18
Q

शस्त्रकर्म -व्याधियाँ
लेखन कर्म

A

लेखन कर्म - रोहिणी, उपजिव्हिका, अधिजिव्हिका, अर्श, मण्डलकुष्ठ, किलास

19
Q

शस्त्रकर्म -व्याधियाँ
ऐषण कर्म

A

ऐषण कर्म शल्ययुक्त नाडी व उन्मार्गी व्रणों में

20
Q

शस्त्रकर्म -व्याधियाँ
वेधन

A

वेधन
मूत्रवृद्धि, जलोदर

21
Q

शस्त्रकर्म -व्याधियाँ
विस्रावण

A

विस्रावण
सान्निपातिक के अतिरिक्त शेष विद्रधियाँ, श्लीपद, कर्णपाली के रोग, स्तनरोग, तालुकण्टक, कृमिदन्त, दंतविष्ट, उपकुश, शीताद

22
Q

मर्माधात के लक्षण -
मर्म विद्ध का सामान्य लक्षण -
सिरा पर आधात -
स्नायु पर आधात -
संधि पर आधात -
अस्थि पर आधात -
मांस पर आधात -

A

मर्माधात के लक्षण -
मर्म विद्ध का सामान्य लक्षण -
मांसोदकाभं रूधिर प्रवृत्ति
सिरा पर आधात -
सुरेन्द्रगोपप्रतिमं प्रभूतं रक्तं
स्नायु पर आधात -
कौब्जयं, तीव्रपीडा, देर से व्रण का भरना
संधि पर आधात - तीव्र रूजा
अस्थि पर आधात - घोरा रूजो यस्य निशादिनेषु सर्वासुअवस्थासु न शान्तेऽस्ति
मांस पर आधात - स्पर्श न जानाति, विपाण्डुवर्णी

23
Q

व्याधिभेद (सुश्रुत)

A

औपसर्गिक रोग - प्रथम उत्पन्न व्याधि के उत्तरकाल में उत्पन्न व्याधि -

प्राक्केवल रोग - इसमें पूर्वरूप व उपद्रव नहीं होते है

अन्य लक्षण रोग- इसमें केवल पूर्वरूप उत्पन्न होते है।

24
Q

सुश्रुतानुसार कुछ प्रमुख गण व उनके कर्म -
विदारीगंधादि -
आरग्वधादि –
वरूणादि –
वीरतर्वादि -
सालसरादि -
रोधादि -
अर्कादि -
पिप्पल्यादि -
वचादि व हरिद्रादि -
श्यामादि -
काकोल्यादि -
गुडुच्यादि -
अम्बवष्ठादि -
एलादि -
त्र्यवादि गण -
ऊषकादि गण -
आमलक्यादि गण
सुरसादि गण-

A

विदारीगंधादि - पित्त + वात शामक
आरग्वधादि – कफ + विष नाशक
(व्रणशोधक)
वरूणादि – कफ + मेद नाशक
(आभ्यान्तर विद्रधि नाशक)
वीरतर्वादि - मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी व शर्करा
नाशक
सालसरादि - प्रमेह व पाण्डु नाशक
रोधादि - अतिसार नाशक
अर्कादि - कृमि, कुष्ठ नाशक
पिप्पल्यादि - आमपाचक
वचादि व हरिद्रादि - दुष्ट स्तन्य शोधक
श्यामादि - उदावर्तनाशक
काकोल्यादि - जीवनीय व वृंहणीय
गुडुच्यादि - सर्व ज्वरहर
अम्बवष्ठादि - पक्वातिसार नाशक
एलादि - विष नाशक
त्र्यवादि गण - शर्करा नाशक
शर्करा नाशक मूष्कादि गण
ऊषकादि गण - अश्मरी, शर्करा व मूत्रकृच्छ्र
आमलक्यादि गण नैत्ररोग नाशक
सुरसादि गण- प्रतिश्याय, कास, श्वासनाशक

25
औषधगण number
ओषधगण- सु.-37 अ.ह. - 33 अ.स-25
26
सुश्रुतानुसार कुछ विशिष्ट मात्राऐं - क्वाथ - चूर्ण - कल्क
क्वाथ - 1 अंजली (4 पल) चूर्ण - 1 विडालपदक (1 कर्ष) कल्क 1 अक्ष (1 कर्ष)
27
कर्मानुसार महाभूत प्राधान्य (सुश्रुत) विरेचन – वमन द्रव्य – संशमन - सांग्राही – दीपन – लेखन -
विरेचन – पृथिवी + जल वमन द्रव्य – वायु + अग्नि संशमन - आकाश सांग्राही – वायु (शार्गधर – तेज) दीपन – अग्नि महाभूत प्रधान लेखन - वायु + अग्नि प्रधान
28
सुश्रुतानुसार विरेचनार्थ श्रेष्ठ मूल - फल – दुग्ध - त्वचा - तैल -
मूल - अरूण त्रिवृत की, फल – हरीतकी का, दुग्ध - स्नूही का त्वचा - तिल्वक की तैल - एरण्ड का
29
विभिन्न ऋतुओं के अनुसार ग्राह्या जल (सुश्रुत) वसन्त में - ग्रीष्म में - प्रावृट - वर्षा – शरद - हेमन्त -
वसन्त में - कुएँ व झरने का जल ग्रीष्म में - कुएँ व झरने का जल प्रावृट - चौण्ड्य जल वर्षा – आन्तरिक्ष व औ‌द्भिद जल शरद - सभी जल ग्राह्मा है। हेमन्त - सरोवर का जल ग्राह्मा है।
30
मधातिरेक का क्रम -
कफ < वात < पित्त (शीघ्रतम)
31
सुश्रुतानुसार मांसवर्ग –
(6) जलेशाय, आनूप, ग्राम्य, क्रव्यभुज, एकशफ
32
जांगलाश्चा भेद
(1) जांगला 8 प्रकार के जंधाला, विष्कर, प्रतुद, गुहाशय, प्रसह्मा, पर्णभृत व ग्राम्या (2) आनूप 5 प्रकार व मत्स्या कूलचरा, प्लवा, कोषस्थ, पादिन
33
ऋतु के अनुसार भोजन ग्रहण काल (सुश्रुत) हेमन्त व शिशिर में ग्रीष्म व प्रावृट में शरद व वसन्त में
हेमन्त व शिशिर में रात्रि लम्बी भोजन प्रातः काल ग्राह्या ग्रीष्म व प्रावृट में दिन लग्बे भोजन अपरान्ह में ग्राह्या शरद व वसन्त में दिन व रात समान भोजन मध्यान्ह में ग्राह्या
34
अहंकार भेद-(सुश्रुत)
वैकारिक (सात्विक) तैजस (राजस) {11 इन्द्रियो की उत्पत्ति} भूतादि (तामस) तैजस (राजस) {पंचतन्मात्रा व पंचमहाभूत की उत्पत्ति}
35
महाभूतों व मानस गुणों में सम्बन्ध (सुश्रुत) आकाश - वायु – अग्नि – जल - पृथिवी –
आकाश - सत्व बहुल वायु – रजो बहुल - अग्नि – सत्व + रज जल - सत्व + तम पृथिवी – तम बहुल
36
सर्वचेष्टासमूहकर – सर्व द्रव समूह - सर्वमूर्त समूह - सर्वच्छिद्र समूह विविक्तता -
सर्वचेष्टासमूहकर – वायु सर्व द्रव समूह - जल सर्वमूर्त समूह - पृथिवी सर्वच्छिद्र समूह विविक्तता - आकाश
37
भोजन में उत्तरोतर गुरूता का क्रम -
पेय < लेह < अक्ष < भक्ष्य
38
गर्भ का पोषण - असंजातसार अवस्था में – संजातसार अवस्था में –
असंजातसार अवस्था में – तिर्यकगामी धमनियम उपसनेह से संजातसार अवस्था में – गर्भनाडी / रसवहा के उपस्नेह से (चरक - उपस्नेह व उपस्वेद दोनों से)
39
द्वादश प्राण
अग्नि + सोम + अनिल + सत्व + रज+ तम + पंचेन्द्रियाँ + भूतात्मा
40
मेद के मृदुपाक से निर्माण – मेद के खरपाक से निर्माण –
शिरा का स्नायु का
41
दिवास्वप्न है - रात्रि जागरण है -
दिवास्वप्न है - सर्वदोष प्रकोपक रात्रि जागरण है - वात पित्त प्रकोपक
42
त्वचागत दोष की गंभीरता में रक्तमोक्षणार्थ
क्रम सिरा > विषाण > तुम्बी > जलौका > प्रच्छान सर्वाधिक गहराई में दोष की स्थिति होने पर सिरा वेधन से रक्तमोक्षण करना चाहिए।
43
औषध मात्रा (सुश्रुत) क्षीरप हेतु - क्षीरान्नाद - अन्नाद -
क्षीरप हेतु - अंगुली पर्व पर आ सकने वाले प्रमाण में क्षीरान्नाद - कोलास्थि प्रमाण में अन्नाद - कोल प्रमाण में
44
वातज व्रण - पैत्तिक व्रण – कफज व्रण – रक्तज व्रण –
वातज व्रण - कृष्णवर्णी पैत्तिक व्रण – किंशुकोदकाभ, उष्णस्रावी कफज व्रण – प्रततचण्ड, कण्डुबहुल रक्तज व्रण – प्रवालदलनिचय प्रकाशः ।