Page 28-33 Flashcards

(33 cards)

1
Q

वमनविरेचन शुद्धि

चरकानुसार

A

शुद्धि प्रकार. वेग संख्या
वमन विरेचन
जघन्य (अवर). 4 10
मध्यम शुद्धि. 6 20
प्रवर शुद्धि. 8 30

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Q
A
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3
Q

निर्हरत दोष मात्रा

A

शुद्धि प्रकार. निर्हरत दोष मात्रा
वमन. विरेचन
जघन्य (अवर). 1 प्रस्थ 2 प्रस्थ
मध्यम शुद्धि. 1½ प्रस्थ 3 प्रस्थ
प्रवर शुद्धि. 2 प्रस्थ. 4 प्रस्थ

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4
Q

सुश्रुतानुसार

A

प्रवर शुद्धि -1 आढ़क प्रस्थ)
दोष निर्हरण - 3 बार यवागु सेवन करावें

मध्यम शुद्धि - 1/2 आढक (2) प्रस्थ)
दोष निर्हरण- 2 जर सवागु सेवन करावें

अवर शुद्धि - 1 प्रस्थ दोष निर्हरण
1 बार यवागु सेनन करावें

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5
Q

काश्यपानुसार -
वमन वेग

A

कनिष्ठ शुद्धि - 2-3 वेग

मध्यम शुद्धि - 4-5 वेग

उत्तम शुद्धि 6-7 वेग

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6
Q

विरेचन देग

A

कनिष्ठ शुद्धि - 2 वेग 1 प्रस्थ दोष निर्हरण

मध्यम शुद्धि 3 वेग- 2 प्रस्थ दोष निर्हरण

उत्तम शुद्धि 4 वेग - 3 प्रस्थ दोष निर्हरण

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7
Q

शुद्ध रक्त का लक्षण -

A

चरक - तपनीयेन्द्रगोपाभं प‌द्मालक्त संन्निभम सुश्रुत - इन्द्रगोप प्रतीकाशं असंहतम

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8
Q

आलेप -

सुश्रुतानुसार -

A

(क) प्रलेप - शीत, तनु
(ख) प्रदेह उष्ण / शीत, बहल (गाढ़ा) वातश्लेष्म प्रशमन कारक
(ग) आलेप मध्यम अविदग्ध शॉफ एवं रक्तपित्त में हितकर

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9
Q

आलेप में स्नेह की मात्रा

A

पित्तज में - 1/6 भाग
वातिक में 1/4 भाग
कफज में 1/8 भाग

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10
Q

वाग्भटानुसार प्रलेप प्रदेह

A

प्रलेप गाढा व उष्ण, वात कफनाशक

प्रदेह तनु व शीतल, पित्तनाशक

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11
Q

आलेप की मोटाई -

A

सुश्रुत - आर्द्र माहिष चर्मोत्सेध
(भैंस के गीले चमडे के समान नोटा)

चरक - त्रिभागांगुष्ठ
(अंगुष्ठ के 1/3 भाग जितना गोटा)

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12
Q

शार्गधरानुसार लेप की मोटाई -

A

दोषघ्न लेप 1/4 अंगुल मोटा

विषघ्न लेप 1/3 अंगुल मोटा

वर्ण्यकर लेप 1/2 अंगुल मोटा

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13
Q

अष्टमहागद चरक सुश्रुत

A

चरक -
वातव्याधी अपस्मारी गुल्मी शोफी तथा उदरी। कुष्ठी च मधुमेही च राजयक्ष्मी च यो नरः (च०ई०)

सुश्रुत -
वातव्याधी प्रमेहश्च कुष्ठमर्शी भगन्दरम् । अश्मरी मूढगर्भश्च तथैवोदरं अष्टगम् ।। (सु०सू० 33)

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14
Q

चतुष्पादक क्रम -चरक सुश्रुत भेल

A

चरक -
भिषक द्रव्याणुपस्थाता रोगी पाय चतुष्टयम् ।

सुश्रुत - वैधौ व्याध्युपसृष्टश्च भेषजं परिचारक

भेल भिषक को अन्त में गाना है।

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15
Q

बल का अनुमान -

A

चरक व्यायाम से

सुश्रुत - व्यायाम + स्थिरता से

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16
Q

अक्रियायां धुवं मृत्यु क्रियायां संशयो भवेत सन्दर्भ है-

A

चरक - सान्निपातिक उदर रोग में

सुश्रुत - अश्मरी प्रकरण में

हारीत - जलोदर में

17
Q

फलों में श्रेष्ठ है -

A

चरक - द्राक्षा

सुश्रुत - आमलकी

वाग्भट - द्राक्षा

18
Q

विलेपी यवागु

A

विलेपी बहुसिक्थाः स्याद् यवागुर्विरलद्रवा – सुश्रुत

यवागु बहुसिक्था स्याद विलेपिर्विरलद्रवा – शार्गधर

19
Q

क्लोम है -

A

फुफ्फुस व उंडुक – गंगाधर, हृदय - चक्रपाणि

पित्ताशय - डल्हण, कण्डनाड़ी व श्वासनाड़ी – गणनाथसेन

20
Q

सर्पगमिहत शंकाविष

A

सर्पगमिहत – सुश्रुत – वात का प्रकोप

शंकाविष - चरक – वात का प्रकोप

21
Q

नवायस लौह का रोगाधिकार -

A

चरक - पाण्डु

सुश्रुत - प्रमेह पिड़िका

22
Q

महास्नेह प्रयोग -
चरकानुसार सर्पि

A

सर्पि – पित्त अनिलहर, रस शुक्र ओजसां हितं, निवार्पणं, मृदुकर, स्वरवर्णप्रसादक

23
Q

महास्नेह प्रयोग -
चरकानुसार तैल

A

तैल - वातशामक मगर कफ वर्धक नहीं, बलवर्धक, त्वच्य, उष्मा व मांस को स्थिर रखने वाला, योनिविशोधक

24
Q

महास्नेह प्रयोग -
चरकानुसार वसा

A

वसा - विद्ध एवं भग्न में, योनिभ्रंश में, कर्ण व शिरःशूल नाशक, पुरूषार्थ वृद्धि हेतु व नित्य व्यायाम करने वाले पुरूषो में उपयोगी

25
महास्नेह प्रयोग - चरकानुसार मज्जा
मज्जा - बल, शुक्र, रस, श्लेष्मा, मेदा व मज्जा का वर्धन करने वाला'
26
महास्नेह प्रयोग - सुश्रुतानुसार -
सर्पि - विषार्त, हीनबुद्धि व वातपैतिक विकारों में तैल - उत्यसन्न कफमेद एवं कृमिकोष्ठ में उपयोगी वसा तीव्राग्नि वाले एवं चायु हो जिसका प्राण है ऐसे लोगों में उपयोगी मज्जा - क्रूरकोष्ठ में एवं वातज विकारो में उपयोगी।
27
रोगानुसार स्नेह पाक का प्रयोग -
चरक सुश्रुत मृदु पाक नस्य पान मध्य पाक. पान व वस्ति में. नस्य, अभ्यंग खर पाक. अभ्यंग. वस्ति व कर्णपूरण
28
स्नेहसिद्धि के लक्षण
चरक व शार्गधर फेन आगम - सर्पिसिद्धि फेन शान्ति - तैल सिद्धि सुश्रुत फेन आगम तैल सिद्धि फेन शान्ति -सर्पि सिद्धिः
29
गर्भ का मासानुमासिक विकास - प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ
प्रथम मास चरक – खेटभूत, सत व असत रूप सुश्रुत - कलल रूप द्वितीय मास चरक - धन स्वरूप (धन-पुरुष, पेशी-स्त्री, अर्बुद-नपुंसक) सुश्रुत – महाभूतों से पाक, घन, अर्बुद, पेशी स्वरूप तृतीय मास - चरक - सुःख दुख की वेदना, दौहृद उत्पत्ति, सर्वेन्द्रियां एवं सर्वावयवो की उत्पत्ति, स्पन्दन प्रारम्भ सुश्रुत - हस्त, पाद, शिर व पंचपिंड़को का निर्माण, अंग प्रत्यंग विभाग सूक्ष्म चतुर्थ मास : चरक - गर्भ की स्थिरता बढ़ती है गर्भिणी का शरीर भार बढ़ जाता है सुश्रुत गर्भ हृदय व चेतना का प्रार्दुभाव, गर्भिणी की दौहृद संज्ञा
30
गर्भ का मासानुमासिक विकास - पंचम षष्टम सप्तम अष्टम नवम
पंचम मास - चरक गर्भ के मांस व रक्त की अधिक वृद्धि, गर्भिणी कृश हो जाती है। सुश्रुत मनः प्रतिबुद्धतंर भवति । षष्टम मास - चरक - बालक के बल वर्णादि की वृद्धिः फलतः गर्भिणी के बल व वर्ण की हानि होती है सुश्रुत - षष्ठे बुद्धिः सप्तम मास - चरक गर्भ सम्पूर्ण भावों से पुष्ट, गर्भिणी क्लान्ततम सुश्रुत – सर्वांग प्रत्यंग विभाग प्रव्यक्त्ततरः काश्यप गर्भ त्रिदोषयुक्त अष्टम मास चरक ओज का आदान प्रदान सुश्रुत - ओज की अस्थिरता, नैऋरा को बलि नवममास - चरक आठवें मारा के 1 दिन पश्चात से ही प्रसव काल प्रारम्भजो कि 10 मास तक विघ्नरहित माना जाता है। सुश्रुत -9-12 वें मास तक प्रसवकाल
31
सुश्रुत - तृतीय मास - इन्द्रियाँ चतुर्थ मास इन्द्रियाँ सप्तम मास - इन्द्रियाँ
सुश्रुत - तृतीय मास - इन्द्रियाँ सूक्ष्म चतुर्थ मास इन्द्रियाँ प्रव्यक्त सप्तम मास - इन्द्रियाँ प्रव्यक्तत्तर
32
दौहृदावस्था -
चरक - तृतीय मास सुश्रुत - चतुर्थ मास वाग्भट 3 पक्ष से 5 मास तक काश्यप - तृतीय मास
33
गर्भ में सर्वप्रथम उत्पत्ति चरक। सुश्रुत शिर हृदय नाभि गुदा हाथ पैर इन्द्रियाँ अचिन्त्य सर्वांग
चरक। सुश्रुत शिर। कुमार शिराभरद्वाज। शौनक हृदय। काकायन कृतवीर्य नाभि। भद्रकाप्य। पाराशर गुदा भद्रशौनक पाणिपाद - मार्कण्डेय हाथ पैर बडिश मध्य शरीर - सुभूति गौतम इन्द्रियाँ। वैदेह जनक. सर्वांग - धन्वतरी अचिन्त्य। मरीच काश्यप सर्वाग। आत्रेय